हकलाना । haklana kaise thik kare.
सामान्यतः डेढ़ से दो साल की उम्र से बच्चा अपने आसपास की चीजों को देखकर तथा
दूसरों की आपस में की गई बातचीत को सुनकर बोलने की कोशिश करता है।
जब वह बोलना शुरू करता है, तो उसकी बोली बाल सुलभ मिठास लिए कुछ अटपटी और तोतली-सी होती है,
लेकिन उम्र और अभ्यास बढ़ने के साथ-साथ जुबान साफ हो जाती है।
जब उम्र 5-6 वर्ष तक होने के बाद भी उच्चारण साफ न होकर, हकलाहट का दोष बना रहे,
तो वह रोग की श्रेणी में माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि बोलने में हमारे शरीर की 100 से भी अधिक पेशियां काम करती हैं।
इन सभी के आपसी तालमेल बैठने पर ही स्पष्ट उच्चारण निकलता है।
जरा-से मानसिक दबाव से ध्वनि का उच्चारण बिगड़ जाता है।
यही कारण है कि हकलाने वाले बच्चे अकसर भयपूर्ण स्थितियों में अधिक हकलाते हैं।
कारण :
हकलाने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारणों में: समय से पहले बच्चे का जन्म, जन्म के बाद पहले वर्ष में बच्चे का गंभीर बीमारियों से पीड़ित रहना,
जीभ का ठीक से काम न करना, मांसपेशियों की जन्मजात विकृतियां, कम सुनना या बिल्कुल न सुनना, अपरिचित लोगों का डर,
हीनता का बोध, माता-पिता का बच्चे के प्रति क्रूर व्यवहार, माता-पिता से दंडित होने का भय, अध्यापक की मार का भय,
डर से पेशियों की जकड़न, मस्तिष्क से जुबान तक आने वाले चेतना तंतुओं में किसी विकृति के कारण पेशियों का ठीक प्रकार कार्य न करना,
अपने भाई-बहिनों के प्रति बच्चे में ईर्ष्या का भाव रहना, मानसिक दबाव में आकर पेशियों का खिंच जाना, गंभीर मानसिक धक्का, सदमा,
मस्तिष्क में रसौली या बीमारी का होना, बचपन में’ श्वास क्रिया की कमजोरी, किसी हकलाने वाले बच्चे या बड़े की नकल करना,
टाइफाइड जैसी लंबी बीमारी के बाद श्वास क्रिया छोटी रहना, जिससे बोलने की स्पीड बढ़ना, स्पीड बढ़ने से बोलने में अटकना आदि होते हैं।
कुछ माता-पिता की आदत होती है कि वे कुछ शब्दों का सही-सही उच्चारण नहीं करते, जिससे उनके बच्चे भी वैसा ही अनुकरण करने लगते हैं और फिर जीवन भर शब्दों का गलत उच्चारण करते रहते हैं।
माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को बार-बार शब्दों का सही उच्चारण सिखाएं और स्वयं भी शब्दों का सही- सही उच्चारण करें।
लक्षण :
हकलाने वाले बच्चे संकोच के कारण प्रायः चुप अधिक रहते हैं। दूसरों के हंसी उड़ाने के कारण भयातुर तथा चिड़चिड़े भी होते जाते
हैं। ईर्ष्या क्रोध आदि इन बच्चों में अधिक होता है, इस कारण ये जिद्दी भी हो जाते हैं। इन मनोविकारों को इनके चेहरे पर देखा जा सकता है।
क्या खाएं
खाने में गेहूं की रोटी, मूंग, मसूर, अरहर की दाल, पुराने साठी चावल का भात खाएं।
हरी सब्जियों में पालक, लौकी, शलगम आदि सेवन करें।
फलों में अंगूर, अनार, सेव, पपीता, आंवला खाएं।
एक चम्मच पिसा हुआ आंवला घी में मिलाकर चाटें।
रात्रि में 10-12 बादाम पानी में भिगोकर सुबह पीस लें। लगभग 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर
सुबह नाश्ते के बाद कुछ माह तक नियमित खाएं
दिन में 2-3 बार दालचीनी चबाकर चूसते रहें।
सोते समय कुछ छुहारे दूध में उबालकर खाएं, फिर ऊपर से दूध पी लें और सो जाएं।
सुपाच्य, हलका आहार करें।
क्या न खाएं
अन्नों में चना, उड़द की दाल न खाएं।
आलू, कटहल की सब्जी का सेवन न करें।
सिरका, कड़क चाय, कॉफी, शराब से परहेज करें।
मांस, मछली, अंडे, खटाई, अचार न खाएं।
रोग निवारण में सहायक उपाय
बच्चे में माता-पिता और अध्यापक का भय हो, तो उसे दूर करें।
बालक के लिए शांत, तनाव रहित वातावरण बनाएं।
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बच्चे की हीन भावना को दूर करें।
जिन शब्दों के उच्चारण में हकलाहट पैदा होती हो, उनके सही उच्चारण का अभ्यास एकांत
में करें।
बच्चे को धीरे-धीरे धैर्यपूर्वक बोलना सिखाएं। उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं। प्रोत्साहन दें।
क्या न करें
बच्चे की नकल उतार कर उसका मजाक न उड़ाएं और न ही उसे अपने मनोरंजन का साधन
बनाएं।
खुद तुतलाकर या हकलाकर न बोलें और न बच्चे की नकल उतारें।
जब बच्चा बोल रहा हो, तो बीच में बार-बार टोक कर बात दोहराने का निर्देश न दें। बच्चे पर दबाव डाल कर जल्दी-जल्दी बोलने को न कहें।
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