vitamin kya hai ? Importance of Vitamins in Daily Life In Hindi.
Why Vitamins are Necessary in our Diet In Hindi?
आहार में विटामिन का बहुत महत्व होता है, क्योंकि विटामिन शरीर को विभिन्न रोग-विकारों से सुरक्षित रखते हैं।
जल और वायु के द्वारा हर समय शरीर पर रोगों के जीवाणुओं का संक्रमण होता रहता है। दूषित जल व
अन्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से जीवाणु शरीर में पहुंचकर रोगों की उत्पत्ति करते हैं।
बाहर के जीवाणु शरीर में पहुंचकर रोग निरोधक शक्ति के जीवाणुओं से युद्ध करते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के रोग निरोधक शक्ति वाले जीवाणु अधिक शक्तिशाली होते हैं तो वह रोग से पीडित नहीं होता।
यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से अधिक निर्बल होता है तो उसमें रोग निरोधक जीवाणुओं की शक्ति भी कम होती है,
ऐसे व्यक्ति विभिन्न रोगों के शिकार हो जाते हैं।
विटामिन ही शरीर में रोग निरोधक शक्ति के जीवाणुओं को अधिक शक्ति प्रदान करते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार विटामिनों के बिना आहार सेवन करने से शरीर का विकास रुक जाता है।
रोग निरोधक शक्ति विटामिनों से बनती है और विटामिनों के अभाव में रोग निरोधक शक्ति क्षीण होने पर
शरीर को विभिन्न रोग-विकार घेर लेते हैं।
vitamin kya hai ? Importance of Vitamins in Daily Life In Hindi.
विशेषज्ञों के अनुसार विटामिन शब्द की उत्पत्ति ‘वाइटल’ शब्द से हुई है। वाइटल शब्द का अर्थ है,
स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य तत्त्व ।
विशेषज्ञों ने वर्षों तक परीक्षण करके ज्ञात किया है कि विटामिनों में रोग-निरोधक शक्ति के लिए शक्तिवर्धक अनिवार्य तत्त्व होते हैं।
‘फल व सब्लियों में प्राकृतिक रूप से विटामिनों का समावेश होता है,
जबकि आधुनिक परिवेश में वैज्ञानिक रासायनिक पद्धति से भी विटामिनों का निर्माण करते हैं।
टॉनिकों के रूप में ऐसे विटामिनों का खूब प्रचलन है। डॉक्टर भी ऐसे विटामिनों का परामर्श देते हैं,
लेकिन ऐसे विटामिन शरीर को अधिक शक्ति नहीं दे पाते, क्योंकि शरीर के पाचक रस (एंजाइम)
इन विटामिनों का पाचन नहीं कर पाते और ऐसी स्थिति में विटामिन शौच के साथ निष्कासित हो जाते हैं।
फल-सब्जियों के रस में पाए जाने वाले प्राकृतिक विटामिन शरीर में सरलता से पचकर भरपूर रोग निरोधक शक्ति
प्रदान करते हैं।
विटामिन -ए vitamin ‘A
B शरीर को विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’, ‘के’ और ‘पी’ की अधिक आवश्यकता होती है।
प्रतिदिन के भोजन में इन विटामिनों के अभाव में विभिन्न रोग शरीर को अपना शिकार बना लेते हैं।
विटामिन ‘ए’ के अभाव में नेत्र ज्योति इतनी क्षीण हो जाती है कि 10-12 वर्ष की आयु में बच्चों को चश्मा लगवाना पड़ता है।
विटामिन A की कमी से रतौंधी रोग के कारण शाम होते ही रोगी को कम दिखाई देने लगता है।
यदि इस पर शीघ्र ध्यान न दिया जाए तो नेत्रहीनता की स्थिति बन सकती है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार विटामिन ‘ए’ के अभाव से दांतों के रोग, त्वचा में जलन, त्वचा के रोग,
शारीरिक निर्बलता और पथरी की विकृति हो सकती है।
विटामिन A के अभाव में कुछ स्त्री-पुरुषों में रक्ताल्पता (एनीमिया), श्वास रोग, रक्त में यूरिक अम्ल की अधिकता और विभिन्न अंगों में शोथ की विकृति भी देखी जाती है।
हरे पत्तों वाले साग व सब्जियों में विटामिन ‘ए अधिक मात्रा में पाया जाता है।
मछली के यकृत के तेल में विटामिन ‘ए’ सबसे अधिक मात्रा में होता है। जब शरीर में विटामिन ‘ए’ का अभाव होता है
तो आहार की पाचन क्रिया पूरी तरह नहीं हो पाती । ऐसी स्थिति मैं विकारों की उत्पत्ति होती है।
विटामिन ‘बी’- vitamin ‘B’
विटामिन ‘बी’ में अनेक दूसरे विटामिन भी होते हैं। विटामिन ‘बी’ को इस वर्ग के विटामिनों का समूह भी कह सकते हैं,
क्योंकि इसमें थायमिन, रिबोफ्लेबिन, फॉलेट, नियासिन, पाइरिडॉक्सिन और बी-12 सम्मिलित होते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार बायोटिन, कॉलिन, पंटोथिनिक अम्ल, इनोसिटॉल, पन््गमिका अम्ल, बैंजोइक अम्ल आदि भी इसी वर्ग के विटामिन होते हैं।
इस वर्ग के विटामिन शरीर के लिए बहुत गुणकारी होते हैं, क्योंकि ये विटामिन जल में जल्दी घुल जाते हैं।
विटामिन बी-1
आहार की पाचन क्रिया के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। आहार में विटामिन बी-1 के पर्याप्त मात्रा में होने के
कारण पाचन क्रिया तीव्र होने से अधिक भूख ‘लगती है। स्रायुओं को शक्ति मिलने से उनकी कार्य क्षमता विकसित होती है।
स्मरण शक्ति बढती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार विटामिन बी-1 अर्थात थायमिन की आहार में कमी होने से
रक्त में पायरुविक अम्ल की वृद्धि होने से हृदय को हानि पहुंचने की संभावना रहती है। इस अम्ल की वृद्धि से
हृदय की क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न होता है।
इस विटामिन के अभाव से बेरी-बेरी रोग की उत्पत्ति हो सकती है। अंकुरित गेहूँ, चावल, दूध, दालें, सोया बीन और हरे पत्ते वाले शाकों में विटामिन बी-1 अधिक होता है। हरी सब्जियों और फलों के सेवन से इस विटामिन की पूर्ति होती है।
विटामिन बी-2
शारीरिक विकास, रोग प्रतिरोधक शक्ति के लिए बहुत आवश्यक होता है। इस विटामिन में शरीर में शक्ति और स्फूर्ति का
समावेश होता है। यह प्रौढ़ावस्था को आने से रोकता है। दूध, सोया बीन, अंकुरित गेहूँ, पपीते, केले आदि में
पाए जाने वाले विटामिन बी-2 के सेवन से स्रायुओं को प्रबल शक्ति मिलती है। नेत्र रोगों से सुरक्षा होती है।
विटामिन बी-2 पाचन क्रिया की निर्बलता को नष्ट करता है।
यह विटामिन जल में बहुत कम घुलता है।
अधिक समय तक इस विटामिन का अभाव बना रहे तो पाचन क्रिया विकृत हो जाती है, मस्तिष्कनिर्बल हो जाता है,
भूख कम लगती है और मुंह में छाले निकलने की विकृति भी इस विटामिन के अभाव से होती है।
त्वचा के रोग खुजली आदि भी इसके अभाव के कारण उत्पन्न होते हैं।
Vitamin ‘B3’ निकोटिनिक अम्ल — Niacin or Nicotinic Acid
इस विटामिन को ‘नियासिन’ भी कहा जाता 21 इस विटामिन के अभाव से प्रेलाग्रा के लक्षण दिखाई देते हैं
और शारीरिक सौंदर्य को बहुत हानि होती है, क्योंकि इसके अभाव से त्वचा खुरदरी और शुष्क होकर फटने लगती है।
अतिसार की उत्पत्ति होने से शरीर में जल की अत्यधिक कमी हो जाने से निर्बलता के कारण सौंदर्य विकृत होता है।
प्रतिदिन स्वस्थ स्त्री-पुरुष को 10 मिली ग्राम निकोटिनिक अम्ल की आवश्यकता होती है।
इस विटामिन से आमाशय, आंत्र और तंत्रिका-तंत्र की क्रियात्मक क्षमता बनी रहती है।
इस विटामिन को गेहूँ को अंकुरित करके, आलू, अनाज के छिलकों, बादाम, मांस और पत्तेदार सब्जियों के सेवन से प्राप्त किया जा सकता है। इसके अभाव से नींद न आने की विकृति और सिरदर्द की उत्पत्ति होती है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए निकोटिनिक अम्ल की बहुत आवश्यकता होती है।
निकोटिनिक सेब, अंजीर, अमरूद, कटहल, जामुन, Hig, मौसमी, आम, संतरा, पपीता, अनन्नास, टमाटर, चना, बधुआ, चुकंदर, गाजर, प्याज, मूली और कद्दू में पर्याप्त मात्रा में होता है।
विटामिन बी-6
शरीर में प्रोटीन की पाचन क्रिया के लिए आवश्यक होता है। यह अनाजों के छिलके, दूध और हरे पत्तों वाले शाक व दूसरी
सब्जियों में अधिक मात्रा में होता है। मांस-कलेजी में भी यह विटामिन होता है। इस विटामिन के सेवन से त्वचा स्वस्थ व सुंदर बनी रहती है। तंत्रिका-तंत्र उचित रूप में काम करता है। इसके अभाव से त्वचा के रोग, रक््तवाहिनियों में विकृति उत्पन्न हो सकती है।
विटामिन बी-12
रक्त के निर्माण में बहुत सहायता करता है। गर्भावस्था में स्त्रियों में इस विटामिन की कमी हो जाती है।
रक्ताल्पता भी इस विटामिन के अभाव से उत्पन्न होती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार इस विटामिन की कमी से
DNA की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है, क्ताल्पता की विकृति होती है और रीढ की अस्थि की निर्बलता से विकृतियां उत्पन्न होती हैं।
विटामिन ‘सी’- vitamin ‘C’
विटामिन ‘सी’ शरीर के विकार, रक्तवाहिनियो और मसूड़ों की सुरक्षा करता है।
यह दांतों के साथ अस्थियों को भी शक्ति प्रदान करता है, शरीर के आंतरिक रक्तस्राव को रोकता है
और शरीर पर लगने वाले आघात, जख्म आदि को जल्दी ठीक होने में सहायता करता है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार विटामिन “सी’ अर्थात एस्कॉर्बिक अम्ल एक तरह की शर्करा होती है,
जो युवावस्था को बनाए रखती है। इस विटामिन की ‘कमी से रक्त की चयापचय क्रियाओं में गड़बड़ होती है
और रक्ताल्पता की उत्पत्ति होती है। इस विटामिन का सेवन करने से पक्षाघात से सुरक्षा मिलती है।
इस विटामिन से शरीर को प्रतिरोधक शक्ति मिलती है।
जल में विटामिन ‘सी’ सरलता से घुल जाता है, लेकिन फल-सब्जियों को आग पर पकाने से विटामिन ‘सी’ जल्दी नष्ट होता है।
खट्टे फल नीबू, संतरा, मौसमी, आंवला, टमाटर, पत्तेदार हरी सब्जियां और अंकुरित अनाजों में विशेष रूप में होता है।
आलू में भी अल्प मात्रा में होता है। आलू के छिलकों को अलग कर देने से इसकी मात्रा कम हो जाती है।
विटामिन ‘डी’- Vitamin ‘D’
विटामिन डी दूध, मछलियों के यकृत के तेल और अंडों में अधिक मात्रा में होता है।
दूध से निर्मित घी और मक्खन में भी विटामिन डी की अधिक मात्रा होती है।
बचपन. में इस विटामिन की कमी से शिशु रिकेट्रस रोग के शिकार बन जाते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार त्वचा में उपस्थित डिहाइड्रो कॉलेस्ट्रॉल जब सूर्य की किरणों के संपर्क में आते हैं
तो शरीर में विटामिन डी की उत्पत्ति होती है। ऐसे रोगियों को चिकित्सक धूप में बैठने का परामर्श देते हैं।
शिशु को दूध, मक्खन खिलाने और स्तनपान कराने से विटामिन ‘डी’ की मात्रा शरीर में बनी रहती है।
विटामिन ‘डी’ दांतों और अस्थियों को शक्तिशाली बनाए रखता है।
इस विटामिन की कमी से शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस की पाचन क्रिया संपन्न नहीं होती ।
रीढ़ की अस्थि और हाथ-पांव की अस्थियां क्षीण होकर मुड़ने लगती हैं तथा दांतों में पायरिया की विकृति भी हो सकती है।
विटामिन ‘इ’ Vitamin ‘E’
पिछले कुछ वर्षों से चिकित्सा विशेषज्ञ विटामिन ‘ई’ की आवश्यकता पर अधिक जोर दे रहे हैं।
स्त्रियों और पुरुषों में यौवन की स्थिरता और शारीरिक सौंदर्य को बनाए रखने में विटामिन ‘ई’ का बहुत सहयोग रहता है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रजनन के लिए इस विटामिन का शरीर में पर्याप्त रूप में होना आवश्यक है।
इस विटामिन के अभाव से स्त्रियों में बांझपन की विकृति होती है।
विटामिन ‘ई’ की भोजन में कमी होने से गंजे पन की विकृति होती है।
बाल युवावस्था में ही उड़ने लगते हैं। बालों का कालापन और लंबाई विटामिन ‘ई’ पर निर्भर करती है।
विटामिन ‘ई’ की पर्याप्त मात्रा मधुमेह, अस्थमा और हृदय रोगों से सुरक्षित रखती है।
आयु के बढ़ने के साथ रक्तवाहिनियो में चर्बी (वसा) एकत्र होने लगती है। ऐसी स्थिति में विटामिन ‘ई’ का नियमित सेवन करने से वसा एकत्र नहीं होती।
विटामिन ‘ई’ कॉलेस्ट्रॉल को एकत्र नहीं होने देता। विटामिन ‘ई’ रक्त के गाढ़ेपन को कम करके रक्त को पतला करता है।
प्रतिदिन 100 g, विटामिन ‘ई’ की आवश्यकता होती है और यह आवश्यकता दो किलोग्राम पालक या चार कप
मूंगफली के दानों से पूरी हो सकती है। विटामिन “ई’ अंकुरित गेहूं, तेल, पत्तेदार सब्जियों और दूध, मक्खन में मिलता है।
शलजम की पत्तियों व सलाद में भी यह विटामिन भरपूर मात्रा में होता है।
विटामिन ‘के’- Vitamin ‘K
विटामिन ‘के’ यकृत को क्रियाशील बनाकर प्रोध्रोम्बिन की उत्पत्ति में सहायता करता है।
रक्त को जमने की शक्ति देता है और चोट लगने, त्वचा कट जाने पर घाव को बंद करता है।
जल में यह विटामिन बहुत कम मात्रा में घुल पाता है, लेकिन वसा में जल्दी घुल जाता है।
शरीर में आंत्रों के गुणकारी जीवाणु इस विटामिन ‘के’ की उत्पत्ति करते हैं।
विटामिन ‘के’ हरी सब्जियों, टमाटरों में अधिक मात्रा में मिलता है।
पत्तागोभी, फूलगोभी व पालक में भी पर्याप्त रूप में मिलता है।
विटामिन ‘पी’- vitamin P
B इस विटामिन के अभाव से शरीर की रक्तवाहिनियां क्षीण होती हैं और उनमें संचार के अवरोध से रक्तचाप की विकृति होती है। खट्टे-मीठे फलों और सब्जियों में विटामिन P पर्याप्त मात्रा में होता है।
हृदय रोगों से बचने के लिए इस विटामिन को भोजन में लेना चाहिए।
क्षार — Acid
विटामिनों के अतिरिक्त प्रतिदिन के आहार में क्षार का विशेष महत्व होता है।
क्षार शरीर में रासायनिक तत्तवों के मिश्रण से बनते हैं और शरीर के कोषों की संरचना में सहायता करते हैं।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि क्षार शरीर के कोषों का निर्माण करके शारीरिक सौंदर्य भी प्रदान करते हैं।
अस्थियों, दांतों और नाखूनों को शक्ति प्रदान करने के साथ ही क्षार उनकी सुंदरता को बनाए रखते हैं।
बालों की सुंदरता इन क्षारों पर निर्भर करती है।
प्रतिदिन मूत्र द्वारा 20-25 ग्राम क्षार निष्कासित हो जाते हैं, इसलिए आहार में ऐसे खाद्यों का सेवन करते रहना आवश्यक है,
जिनसे क्षारों की पूर्ति होती रहे। कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, मैंगनीज, आयोडिन, सोडियम, क्लोरिन, लौह, मैग्नीशियम आदि रासायनिक तत्वों में क्षार अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। भोजन में इन तत्वों का समावेश अधिक होता है।
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